वर्षा का दूत, आरोग्य का रहस्य – आ गया आर्द्रा नक्षत्र

Ajay Gupta
Ajay Gupta

सनातन परंपरा और वैदिक ज्योतिष में आर्द्रा नक्षत्र को वर्षा ऋतु के शुभारंभ और जीवन ऊर्जा के संचार से जोड़ा जाता है। साल 2025 में आर्द्रा नक्षत्र का शुभारंभ 22 जून को दोपहर 1:54 बजे होगा और इसका प्रभाव 6 जुलाई की शाम 3:32 बजे तक बना रहेगा। इस पवित्र काल में धरती पर वर्षा का आगमन होता है, जो जीवन की धुरी — जल — को फिर से सक्रिय करता है।

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मिथुन राशि का नक्षत्र, राहु-बुध का विशेष प्रभाव

आर्द्रा नक्षत्र ज्योतिषीय दृष्टि से मिथुन राशि के अंतर्गत आता है और इसका स्वामी राहु होता है। साथ ही, बुध का भी प्रभाव इस नक्षत्र पर रहता है, जिससे यह मानसिक चैतन्यता, ज्ञान और परिवर्तन का द्योतक बनता है। सूर्य के इस नक्षत्र में आने से वातावरण में नमी बढ़ती है, और हल्की बारिश की शुरुआत होती है — जो आगे चलकर अच्छे मानसून का संकेत देती है।

कृषि की तैयारी का संक्रांति काल

किसानों के लिए यह समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। आर्द्रा नक्षत्र के आगमन से वर्षा की शुरुआत होती है, जिससे भूमि की ऊर्वरता में वृद्धि होती है और बीजों के अंकुरण के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार होता है। भारत के कृषि पंचांग में यह समय खेती की तैयारी के पहले चरण के रूप में जाना जाता है। इस नक्षत्र में गिरने वाली वर्षा, धरती की हलचल का आरंभिक संकेत मानी जाती है।

धार्मिक आस्था: खीर, आम और दालपुरी का विशेष भोग

धार्मिक परंपराओं के अनुसार, इस काल में भगवान विष्णु को खीर, आम और दालपुरी का भोग अर्पित किया जाता है। विशेष रूप से महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और आरोग्यता के लिए यह भोग बनाकर देवी-देवताओं को चढ़ाती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान खीर का सेवन करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

‘देव वर्षा’ में स्नान: चर्म रोगों से छुटकारे का उपाय

आर्द्रा नक्षत्र में पड़ने वाली वर्षा को धर्मग्रंथों में ‘देव स्नान’ कहा गया है। मान्यता है कि इस काल की बारिश में स्नान करने से शरीर शुद्ध होता है और विशेष रूप से त्वचा संबंधी रोगों से राहत मिलती है। इस परंपरा का पालन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े श्रद्धा भाव से किया जाता है, और इसे देवत्व के स्पर्श का अवसर माना जाता है।

प्रकृति और परंपरा का वैज्ञानिक समन्वय

आर्द्रा नक्षत्र केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि प्रकृति और परंपरा के संतुलन का उत्सव है। यह नक्षत्र हमें सिखाता है कि जब सूर्य, ग्रह और नक्षत्रों का संतुलन धरती पर वर्षा के रूप में उतरता है, तब न केवल खेती और जल जीवन पाते हैं, बल्कि मानव शरीर, समाज और संस्कार भी ऊर्जा से भर उठते हैं।

इस अवसर पर प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करें

22 जून से शुरू हो रहे आर्द्रा नक्षत्र के दौरान हमें चाहिए कि हम न केवल धार्मिक परंपराओं का पालन करें, बल्कि इसके वैज्ञानिक आधार को भी समझें। प्रकृति के इस नवजीवन काल में सद्भाव, संतुलन और संकल्प के साथ इस पावन अवसर का स्वागत करें।

आर्द्रा नक्षत्र है जीवन का संदेशवाहक — यह न केवल वर्षा का दूत है, बल्कि आरोग्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा का अमूल्य स्रोत भी है।

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